Tuesday, July 3, 2012

माँ __इक याद __बस इक याद

माँ __इक याद __बस इक याद

आज फिर मैं घर देर से आया,
खुद को मैंने,
कुछ बोझल सा कुछ उदास सा पाया ।
नहीं पुछा किसी ने
कहाँ था ? क्यूँ देर से आया ?
साँसे उखड़ी-उखड़ी सी ,
माँ का साया फिर नजर आया ।
फिर ज़हन में ज्वार उठा
शायद
यादों का समंदर
फिर जाग उठा ।

कैसे भूलूँ !!
वो जज़्बात
माँ की दबी दबी सी आवाज़ ।
आज भी
ज़हन में उबलती हैं ।

बेटा घर जल्दी आ जाया कर
जब तक जिंदा हूँ ।
मैं हँसता था -------
माँ यूँ ही चिंता न किया करो
खामख्वाह परेशान करती हो
और खुद भी परेशान होती हो ।
कहीं और ध्यान लगाया करो
वो मुस्कराती और कहती
बेटा माँ हूँ न ।
डर लगता है
ये दुनिया बहुत खराब है ।
मैं अकेला था
तन्हा नहीं था ।

आज अकेला हूँ
तन्हा भी हूँ ।
वैसा इंतज़ार कौन करेगा
कौन समझेगा ।
माँ चली गयी ।

याद करता हूँ
और
इल्तजा करता हूँ
तुम ठीक कहती थी
दुनिया बनावटी है
जालिम है ।
मैं गलत था
फिर कभी
देर से नहीं आऊँगा ।
जैसा कहोगी वही करूंगा ।

इक बार सिर्फ इक बार
आजाओ
वापिस आ जाओ ।
माँ !!


हर्ष महाजन

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